

अशोक चक्रधर का नाम और हंसी एक दूसरे के पर्याय हैं। मगर उनकी हंसी कभी-कभी तीखे प्रहार कर जाती है। उनके ''ए जी सुनिए'' संकलन से खबर पर एक जबर्दस्त व्यंग्य पेश है। अखबारों की नौकरी करने वाले पढे और अपना सिर धुनें....
आप चार दिन रहे लापता
अखबारों में खुद गई कबरें
सच्ची खबरें......
कहां हुआ है - हो जाएगा
समाचार ऊपर से आया
रोको इसको - नो जाएगा
खबर छप गई लट्ठ गड गया
कहां गडा है - गड जाएगा
खबर छप गई, छापा पड गया
कहां पडा है, पड जाएगा
देख रहीं अनकिए काम को
पता नहीं ये किसकी नजरें
सच्ची खबरें......
लडका मेरा अड जाएगा
और बताया अगर किसी को
लडकी वाले, सड जाएगा
दाल बंट रही है जूतों में
कहां बंटी हैं बंट जाएगी
खबर अटपटी, खबर चटपटी
नहीं घटी है घट जाएगी
जो छप गईं सो छप गईं प्यारे
अच्छी लगें या तुमकों अखरें
सच्ची खबरें......
पागल हो गया - दैया री दैया
इकलौते सुत की किडनैपिंग
ये क्या हो गया - दैया री दैया
रामनरायन जीते इलेक्शन
फोरकास्ट तो फिट है भैया
रोडी जिसने रिदम में कूटी
गीतकार वो हिट है भैया
पत्रकार जी लिखें धकाधक
बीयर पीकर मुर्गा कुतरें
सच्ची खबरें......
कहां हुए हैं - हो जाओगे
खबर छपी गुमशुदा तलाशी
मैं तो हूं पर - खो जाओगे
खबर अटपटी खबर चटपटी
नहीं घटी है - सच्ची मानो
हुई लूट ये खबर झूठ पर
अगर छपी है सच्ची मानो
शांत झील के पानी में भी
बना रहीं हलचल की भंवरें
सच्ची खबरें.......
अखबारों में खुद गईं कबरें।।