Friday, June 22, 2007

बनियों की गली

गली में बनियों का राज था। ढेर सारी दुकानें, आढतें और न जाने कितने गोदाम। सब के सब इसी गली में थे। बनिए और उनके नौजवान लडके दिन भर दुकान पर बैठे ग्राहकों से हिसाब किताब में मसरुफ रहते। शुरु -शुरु में वो इस गली से गुजरने में डरती थी, न जाने कब किसकी गंदी फब्‍ती कानों को छलनी कर दे। फ‍िर क्‍या पता किसी का हाथ उसके बुरके तक भी पहुंच जाए। डरते सहमते जब वो इस गली को पार कर लेती तब उसकी जान में जान आती। मगर डर का यह सिलसिला ज्‍यादा दिनों तक नहीं चला। उसने गौर किया ग्राहकों से उलझे बनिए उसकी तरफ ज्‍यादा ध्‍यान नहीं देते। हां इक्‍का दुक्‍का लडके उसकी तरफ जरुर देखते मगर उनकी जिज्ञासा उसके शरीर में न होकर के उस काले बुर्के में थी जिससे वो अपने को छुपाए रखती थी।
वो पढती नहीं थी, छोटी क्‍लास के बच्‍चों को पढाती थी। तमाम शहर में मकान तलाशने के बावजूद जब उसके अब्‍बा को मकान नहीं मिला तो हारकर इस बस्‍ती का रुख करना पडा। अब्‍बा ने मशविरा दिया था ''बेटी घर से बाहर न निकलो'' मगर उनकी आवाज में ज्‍यादा दम नहीं था। घर में कमाने वाला कोई न था फ‍िर वो कुछ रुपयों का इंतजाम कर रही थी तो इसमें बुरा क्‍या था। दिन गुजर रहे थे उसके स्‍कूल जाने का सिलसिला जारी था। उसने नोट किया इधर बीच बनियों की गली के ठीक बाद पडने वाले चौराहे पर पास के मदरसे के तीन चार लडके रोज खडे रहते हैं। उसने ज्‍यादा ध्‍यान नहीं दिया। दिल में एकबारगी आवाज उठी , भला इनसे क्‍या डरना। एक दिन अजीबो गरीब बात हुई। चौराहे पर एक लडका उसके ठीक सामने आ गया। हाथ उठाकर बडी अदा से कहा अस्‍सलाम आलेकुम। वो चौंक गई। उसके लडकों से इस तरह की उम्‍मीद कतई नहीं थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। कलेजा थर थर कांप रहा था। वापसी में भी वही लडके उसके सामने खडे थे। उसने घबरा कर तेज तेज चलना शुरु कर दिया। लडके उसकी तरफ बढे मगर वो फटाक से बनियों की गली में घुस गई। लंबी -लंबी दाढी, सफाचट मूंछ ओर सिर पर गोल टोपी रखने वाले लडकों के इरादे उसे वहशतनाक लगे। रात को वो सो नहीं सकी। रात भर जहन में यही ख्‍याल आता रहा कि कल क्‍या होगा। उसने ख्‍वाब भी देखा , बडी दाढी वाले एक लडके ने उसका दुपट्टा खींच लिया है।
स्‍कूल जाने का वक्‍त हो गया था। वो दरवाजे तक गई मगर फ‍िर लौट आई। आज फ‍िर बदतमीजी का सामना करना पडा तो.....। उसने अब्‍बा से दरख्‍वास्‍त की, उसके साथ स्‍कूल तक चलें। उसने खुलकर कुछ नहीं कहा। अब्‍बा ने भी कुछ नहीं पूछा। मगर उन्‍हें बनियों पर बेतहाशा गुस्‍सा आया। दांत किचकिचाते हुए उन्‍होंने अंदाजा लगा लिया कि बनिये के किसी लडके ने उनकी बेटी को छेडा है। बेटी को गली के पार पहुंचाने के बाद वो वापस लौटने लगे। चौराहे पर अभी भी वो लडके खडे थे। उसने अब्‍बा से स्‍कूल तक चलने की बात कही। आज लडके कुछ नहीं बोले। वापसी में उसका दिल जोर जोर से धडक रहा था। मगर नहीं चौराहे पर लडके नदारद थे। उसने खुदा का शुक्र अदा किया। घर पहुंची तो अम्‍मा उसकी परेशानी का सबब पूछ रहीं थीं। अम्‍मा बार बार बनियों को गाली भी दे रहीं थीं। उन्‍होंने उसे गली छोडने की सलाह भी दी। मगर वो कुछ नहीं बोली।
आज अब्‍बा घर नहीं थे। उसे पहले की तरह अकेले स्‍कूल जाना था। गली से चौराहे पर पहुंचते वक्‍त उसका कलेजा धाड धाड बज रहा था। चौराहे पर लडके हमेशा की तरह उसके इंतजार में खडे थे। वो हिम्‍मत बांधकर आगे बढी मगर फ‍िर एक लडका उसके सामने आ गया। उसके बढने के अंदाज ने उसकी रीढ में सिहरन पैदा कर दी। उसके मुंह से चीख निकल गई। वो वापस बनियों की गली की तरफ दौड पडी। गली के बनिये सारा तमाशा देख रहे थे। शरीफ लडकी से छेडछाड उन्‍हें रास नहीं आई। गली के नौजवान मदरसों के इन लुच्‍चों की तरफ दौड पडे। जरा सी देर में पूरी गली के बनिये शोहदों की धुनाई कर रहे थे। भीड लडकों को पीट रही थी और वो चुपचाप किनारे से स्‍कूल निकल गई। वापस में चौराहा खामोश था। लडके नदारद थे। गली से गुजरते वक्‍त उसे ऐसा लगा कि हर कोई उसे देख रहा है। मगर ये आंखें उसे निहारने के लिए नहीं उठी थीं। ये सहानूभूति और गर्व से उठी नजरें थीं जो उसे बता रहीं थीं कि चिंता मत करो हम अपनी बहू बेटियों के साथ छेडछाड करने वालों का यही हश्र करते हैं।
घर पहुंची तो देखा अब्‍बा एक मौलवी से गूफ्तगू कर रहे हैं। ये उस मदरसे के प्रिंसिपल थे जहां मार खाने वाले लडके तालीम हासिल कर रहे थे। अब्‍बा ने उसे हिकारत की नजर से देखा। उसे कुछ समझ नहीं आया। कमरे में गई अम्‍मा से मसला पूछने। जबान खोली ही थी कि एक थप्‍पड मुंह पर रसीद हो गया।
उसे समझ नहीं आया कि आखिर माजरा क्‍या है। अम्‍मा सिर पटक रहीं थीं, उसने खानदान के मुंह पर कालिख पोत दी। अम्‍मा बयान कर करके रोए जा रहीं थीं। उनकी बुदबुदाती आवाज में उसे सिर्फ इतना समझ आया, बनिए के लडकों से उसकी यारी थी जिन्‍होंने उन शरीफ तालिबे इल्‍मों को पीट दिया। उसका कलेजा मुंह को आ गया, आंखों में आंसू की बूंद छलक आई। अगली सुबह घर में खाना नहीं पका। उसके स्‍कूल जाना छोड दिया।

3 comments:

Abhay said...

Shabdbaan ke tarkash me bade marak teer maujud hai..Jahan tak kahani ka sawal hai..padh kar aisa laga...jaise samay ke kisi frame ka yathawat chitran kar diya gaya ho..aisa laga ..jaise Gali bahle hi baniyon ki thi. Magar isme insaniyat ke rang hai.lekhak ne chune hue shabdo me sunder kahani rachi hai.

Shukriya.

Unknown said...

ji har gali ki yahi kahani hai or gali ke nukkad ke har ghar me rahne wali ldkiyon par ye aarop lagte rahte hai. aarop kabhi samaj lgata hai to kabhi sage sambandhi or jab koi nahi to ghar wale hi ye kam kar baithte hai.
kahane ka matalab ye hai ki kahani mast hai. pasand aayi.

Monika (Manya) said...

मेरे पास ल्फ़्ज़ नहीं बताने को की कैसा लगा पढ कर... सब सीधे दिल को छू गया..एक घटना के माध्य्म से समाज की कई कुण्ठाओं को आपने बखूबी उतार दिया .. सब आंख के सामने हुआ हो ऐसा लगा.. साथ ही अच्छाई और इंसानियत का भी सही चित्रण है.. शुक्रिया ...